नई दिल्ली। ओडिशा के बालासोर जिले में हुआ बहानगा ट्रेन हादसा अब तक का सबसे बड़ा हादसा रहा है। जिसमें बच्चे बड़े बूढ़ों की चीख पुकार के साथ 233 से ज्यादा लोग मौत की नींद सो गए। इस हादसे के बाद ना जाने कितने लोगों के घर उजड़े, तो कितने लोग घर से बेघर हो गए। किसी का तो पूरा का पूरा परिवार खत्म हो गया। हर लोग अपने लापता लोगों के तलाश में चीख पुकार करते नजर आ रहा है। इसी के बीच एक पिता भी ट्रेन हादसे का शिकार हुए बेटे की खोज में दर बदर भटकते हुए मुर्दाघर पहुंचा, जहां मृत घोषित हुए लोगों को रखा गया था। उन मृत घोषित हुई लाशों के बीच 24 साल के विश्वजीत मलिक भी शामिल थे, जो मुर्दाघर भेजे जाने के बाद भी बच गए। उनके पिता ने जैसे ही अपने बेटे के हिलते शरीर को देखा चीख पुकार के साथ कहने लगे मेरा बेटा विश्वजीत अभी भी जिंदा है।
जानकारी के मुताबिक, विश्वजीत के पिता ने बताया कि कुछ घंटे पहले ही उन्होंने अपने बेटे को शालीमार स्टेशन से कोरोमंडल एक्सप्रेस में छोड़ा था। तब यह नहीं सोचा था कि यह यात्रा उनके बेटे के लिए जानलेवा साबित हो सकती है। अभी वो घऱ पर पहुंचे ही थे कि ट्रेन हादसे की खबर उनके कानों तक पहुंच गई। तब विश्वजीत के पिता हिलाराम ने तुरंत अपने बेटे को फोन लगाया जिसके बाद उसने फोन उठाया, लोकिन गहरी चोट लगने के कारण पिता से बात ना कर सका।
बेटे के जख्मी होने की खबर पाते ही पिता एक स्थानीय एम्बुलेंस चालक को लेकर तुंरत बालासोर के लिए रवाना हो गए। 230 किमी की यात्रा के बाद जब वो बालासोर पहुंचे, तो वहां पड़ी लाशों और घायलों के बीच अपने बेटे को विश्वजीत को तलाशने लगे, लेकिन बेटा नही मिला। अपने बेटे की जानकारी सही ना मिलने के बाद वो हिलाराम अस्थायी मुर्दाघर पहुंचे, जहां ट्रेन हादसे में मारे गए लोगों के शव रखे गए थे।
पहले तो उन्हें उस स्थान पर जाने नही दिया जा रहा था लेकिन काफी जदोजहद के बाद जब वो अंदर पहुंचे तो उनकी नजर एक बॉडी पर पड़ी जिसका दाहिना हाथ हिल रहा था। हिलाराम ने अपने बेटे के हाथ को पहचान लिया, और तुरंत अधिकारियों को सूचित किया। विश्वजीत को तुरंत वहां से निकालकर बालासोर सरकारी अस्पताल (डीएचएच) ले जाया गया। जिन्हें घायल अवस्था में देखकर चिकित्सकों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया था । हालांकि अब प्राथमिक इलाज मिलने के बाद से पिता अपने बेटे को अपने साथ घर ले गए। अब पीड़ित का इलाज कोलकाता के एक अस्पताल में चल रहा है।