नई दिल्ली: भारत में तेजी से दौड़ने वाली भारतीय रेल दुनिया के सबसे बड़े रैल नेटवर्क में से एक भी है। जहां पर रोजाना लाखों लोग एक स्थान से दूसरे स्थान जाने के लिए सफर करते हैं। क समय ऐसा खा जह यह रेल कोयले से चलती थी। जिसकी देखरेख का पूरा जिम्मा इंजन के ड्राइवर का होता था। लेकिन बदलते समय के साथ इसमें कई परिवर्तन आ गए।

आधुनिक फीचर्स से लैस ट्रेन अब कम्प्यूटर के इशारे पर दौड़ती है। लेकिन सके बाद भी हमें रेल के ड्राइवर यानि कि लोको पायलट की जरूरत क्यो पड़ती हैं। लोको पायलट का क्या काम होता है?  तो आज हम बताते है कि ट्रेन में जब स्टीयरिंग नहीं होता है तो आखिर लोको पायलट इसे चलाता कैसे है? …

लोको पायलट की नही चलती अपनी मर्जी

भले ही ट्रेन के इंजन को संभालने के लिए लोको पायलट होता है जो ट्रेन को चलाने का काम करता है, लेकिन इसके बाद भी वो अपनी मर्ज़ी से ट्रेन को किसी भी दिशा में ना तो ले जा सकता है नाही उसे रोक सकता है। वह प्रोटोकॉल का पालन किए बगैर ट्रेन के साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ करने का हकदार नही होता है।

ट्रेन में स्टीयरिंग नही होता है इसके लिए लोको पायलट ट्रेन को अपनी मर्ज़ी से लेफ्ट या राइट तक मोड़ नही ही सकता है।

पटरी बदलने की लिए होते हैं अलग से कर्मचारी

ये बात बहुत कम लोग जामते है कि ट्रेन के मोड़ने के लिए या पटरी बदलने के लिए रेलवे में एक अलग कर्मचारी की नियुक्ति की जाती है। इन कर्मचारियों को पॉइंट्समैन कहा जाता है। ये स्टेशन मास्टर के द्वारा दिए जाने वाले निर्देशों पर पटरियों को जोड़ने का काम करते हैं. ट्रेन को किस स्टेशन के कौन-से प्लेटफॉर्म पर रोकना है और किस स्टेशन पर नही रोकना इसका फैसला भी रेलवे के हेड क्वार्टर से किया जाता है। लोको पायलट यह फैसला अपने से नहीं ले सकता है कि ट्रेन को किस स्टेशन पर रोकना है।

लोको पायलट को दिए जाते है ये अधिकार

लोको पायलट का पहला काम होता है सिग्नल को देखकर निर्देशानुसार ट्रेन की स्पीड ज्यादा और कम करना होता है. लोको पायलट के पास स्टीयरिंग नहीं होता है लेकिन वो ट्रेन के गियर बदल सकता है।

लोको पायलट को पटरी के बराबर में लगे साइन बोर्ड पर बनें संकेतों के आधार पर स्पीड को गति देना होता है और ट्रेन के हॉर्न बजाने होते है। ट्रेन में विभिन्न स्थितियों के अनुसार 11 तरह के हॉर्न बजाये जाते है।

आपातकाल की स्थिति में जब वरिष्ठ अधिकारियों से संपर्क ना हो पाए तब वह ट्रेन के सबसे पिछले डिब्बे में मौजूद गार्ड के साथ बातचीत करके सूझ बूझ से सही फैसला लेना भी लोको पायलट का काम है।