Tuesday Remedies: हिन्दू शास्त्र में हर सप्ताह का अपना अलग अलग महत्व होता है. इसी तरह मंगलवार का दिन हनुमान जी का दिन होता है. ये दिन हनुमान जी को समर्पित है. अगर इस दिन विधि-विधान से हनुमान जी की पूजा-अर्चना करने से भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. कई सारे लोग मंगलवार के दिन व्रत भी रखने है. इस दिन पूजा पाठ करने से सकंटों से मुक्ति मिलती है. ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि आती है. कहते हैं व्यक्ति के जीवन में सभी मंगल कार्य होने लगते हैं और कुंडली में मंगल दोष भी बहुत हद तक दूर होता है.

शास्त्रों के हिसाब से मंगलवार के दिन हनुमान जी की कृपा पाना चाहते हैं तो आपको प्रभु श्री राम का नाम लेने मात्र से ही हनुमान जी को प्रसन्न कर सकते है. इस दिन आपको हनुमान जी को प्रसन्न करने और उनकी कृपा पाने के लिए मंगलवार के दिन स्नान-ध्यान के बाद हनुमान जी की पूजा करनी चाहिए. इसके लिए आपको जटायु कृत श्री राम स्त्रोत का पाठ करना चाहिए. चलिए आपको इसके बारे में डिटेल में बताते है.

जटायु कृत श्रीराम स्तोत्र

अगणितगुणमप्रमेयमाद्यं सकलजगत्स्थितिसंयमादिहेतुम् ।

उपरमपरमं परात्मभूतं सततमहं प्रणतोऽस्मि रामचन्द्रम् ॥

निरवधिसुखमिन्दिराकटाक्षं क्षपितसुरेन्द्रचतुर्मुखादिदुःखम् ।

नरवरमनिशं नतोऽस्मि रामं वरदमहं वरचापबाणहस्तम् ॥

त्रिभुवनकमनीयरूपमीड्यं रविशतभासुरमीहितप्रदानम् ।

शरणदमनिशं सुरागमूले कृतनिलयं रघुनन्दनं प्रपद्ये ॥

भवविपिनदवाग्निनामधेयं भवमुखदैवतदैवतं दयालुम् ।

दनुजपतिसहस्रकोटिनाशं रवितनयासदृशं हरिं प्रपद्ये ॥

अविरतभवभावनातिदूरं भवविमुखैर्मुनिभिस्सदैव दृश्यम् ।

भवजलधिसुतारणाङ्घ्रिपोतं शरणमहं रघुनन्दनं प्रपद्ये ॥

गिरिशगिरिसुतामनोनिवासं गिरिवरधारिणमीहिताभिरामम् ।

सुरवरदनुजेन्द्रसेविताङ्घ्रिं सुरवरदं रघुनायकं प्रपद्ये ॥

परधनपरदारवर्जितानां परगुणभूतिषु तुष्टमानसानाम् ।

परहितनिरतात्मनां सुसेव्यं रघुवरमम्बुजलोचनं प्रपद्ये ॥

स्मितरुचिरविकासिताननाब्जमतिसुलभं सुरराजनीलनीलम्।

सितजलरुहचारुनेत्रशोभं रघुपतिमीशगुरोर्गुरुं प्रपद्ये ॥

हरिकमलजशंभुरूपभेदात्त्वमिह विभासि गुणत्रयानुवृत्तः ।

रविरिव जलपूरितोदपात्रेष्वमरपतिस्तुतिपात्रमीशमीडे ॥

रतिपतिशतकोटिसुन्दराङ्गं शतपथगोचरभावनाविदूरम् ।

यतिपतिहृदये सदा विभातं रघुपतिमार्तिहरं प्रभुं प्रपद्ये ॥

इत्येवं स्तुवतस्तस्य प्रसन्नोऽभूद्रघूत्तमः ।

उवाच गच्छ भद्रं ते मम विष्णोः परं पदम् ॥

शृणोति य इदं स्तोत्रं लिखेद्वा नियतः पठेत् ।

स याति मम सारूप्यं मरणे मत्स्मृतिं लभेत् ॥

इति राघवभाषितं तदा श्रुतवान् हर्षसमाकुलो द्विजः।

रघुनन्दनसाम्यमास्थितः प्रययौ ब्रह्मसुपूजितं पदम् ॥