पानी एक ऐसा पदार्थ है, मानव सहित पशु-पक्षियों के लिए भी बेहद आवश्यक होता है। यह पदार्थ सभी प्रकार के जीवो में जीवन के लिए बेहद महत्वपूर्ण होता है। आप जानते ही होंगे की प्रकृति में अनगिनत प्राणी हैं, जिनके गुण धर्म भी अलग अलग होते हैं। इनमें से ही आज हम आपको एक ऐसी कोयल के बारे में यहां जानकारी दे रहें हैं। जो सालभर में सिर्फ एक ही बार पानी पीती है। इस कोयल को ‘जैकोबिन कोयल” के नाम से जाना जाता है। लोकभाषा में इसको चातक या पपीहा के नाम जाना जाता है।

बरसाती मौसम में ही पीती है पानी

आपको बता दें की पपीहा नामक यह पक्षी सिर्फ बरसात के मौसम में ही पानी पीता है। इसकी यह खासियत इसे दूसरे सभी प्राणियों से लग बनाती है। भारत के साहित्य में कई स्थानों पर इस प्राणी का जिक्र हुआ है। बॉलीवुड के कई गानों में भी पपीहा नामक इस प्राणी का नाम आया है। साहित्य में मौजूद जानकारी के अनुसार यह पक्षी बरसात की पहली बूंद को ही पीता है।

झील, तालाब या अन्य किसी पानी वाले स्थान पर जब यह पक्षी जाता है तो अपनी चोंच को बंद कर लेता है ताकी इसके मुंह में पानी की कोई बूंद न जा सके। अतः यह पक्षी नदी, तालाब या झील आदि के पानी को ग्रहण नहीं करता है। पपीहा नामक इस पक्षी की एक खासियत या भी है की यह साफ़ अटवा गंदी किसी भी प्रकार की जमीन का पानी नहीं पीता है।

गायक पक्षी के रूप में है फेमस

आपको बता दें की पपीहा नामक यह पक्षी गहयाक पक्षी के रूप में प्रसिद्ध है। इसको विरह गीत गायक पक्षी कहा जाता है। यह पक्षी सिर्फ बरसात की पहली बूंद को ही ग्रहण करता है अन्यथा यह सालभर प्यासा ही रह जाता है। लोक मान्यता है की यदि इस पक्षी को पकड़ कर इसकी चोंच को पानी में डाल दिया जाए तो यह अपनी चोंच को खोलता तक नहीं है। हालांकि वैज्ञानिक लोग इस बात को नहीं मानते हैं बल्कि वे इसको सिर्फ एक गायक पक्षी ही मानते हैं।

साहित्य से है पुराना जुड़ाव

साहित्य में भी इस प्राणी का जिक्र हुआ है। बता दें की संत तुलसीदास ने “चातक चौतीसी” नामक ग्रंथ लिखा है। जिसमें 34 दोहे लिखें हुए हैं। जानकारी दे दें की 1966 में एक फिल्म आई थी जिसमें आनंद बक्शी का लिखा गीत “सुनो सजना पपीहे ने” काफी लोकप्रिय हुआ था। इस गीत को लता मंगेशकर ने अपनी आवाज दी थी।

महानायक अमिताभ बच्चन के पिता साहित्यकार हरिवंश राय बच्चन ने भी अपने साहित्य में पपीहे को जिक्र किया है। वे लिखते हैं “यह पपीहे की रटन है। बादलों की घिर घटाएं। भूमि की लेती बलाएं। खोल दिल देती दुआएं।।” दूसरी और महादेवी वर्मा ने भी पपीहे का जिक्र कई बार अपने काव्य में किया है।