नई दिल्ली: ट्राउट मछली का पालन करना एक खास कृषि व्यवसाय है जो भारत में अब बड़े पैमाने पर हो रहा है। यह मछली अंग्रेज़ों द्वारा भारत लाई गई थी, लेकिन इसकी औषधीय गुणवत्ता के कारण यहां पर भी इसका उत्पादन बढ़ता जा रहा है। ट्राउट मछली ठंडे पानी में पाई जाती है, जिसके कारण इसका पालन जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, और सिक्किम जैसे पहाड़ी राज्यों में किया जाता है। इन राज्यों की जलवायु इन मछलियों के लिए अत्यंत उपयुक्त है। इसलिए, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, और उत्तराखंड में ट्राउट मछली का उत्पादन अब बहुत अधिक हो रहा है। यहां के ठंडे, ताज़े पानी की ट्राउट फिश भारत में बिकने वाली महंगी मछलियों में से एक है।
ट्राउट मछली की ख़ासियत
ट्राउट मछली दो तरह की होती हैं – रेनबो ट्राउट और ब्राउन ट्राउट। ये दोनों ही मछलियाँ साफ और ठंडे बहते पानी में पालन की जा सकती हैं। इन मछलियों में प्रोटीन और ओमेगा-3 फैटी एसिड की भरपूर मात्रा मिलती है, जिससे दिल की बीमारियों वाले मरीजों के लिए ये मछलियाँ बहुत फायदेमंद होती हैं। इनका सेवन मोटापे, हाई ब्लड प्रेशर, और कोलेस्ट्रॉल को कंट्रोल करने में भी मददगार साबित होता है। पहाड़ी क्षेत्रों के किसान ट्राउट मछली पालन करके अपनी कमाई में इज़ाफा करने में जुड़े हैं।
ट्राउट मछली की कीमत
इस मछली की मांग बहुत ज्यादा हो गई है, लेकिन उत्पादन कम होने के कारण बाजार में इसकी बहुत बड़ी मांग है। इसके कारण, यह महंगी मिलती है। ट्राउट मछली की कीमत 1,000 से 1500 रुपये प्रति किलो तक हो सकती है। वास्तव में, इस मछली को प्राप्त करने के लिए खर्च भी ज्यादा होता है, जिससे इसकी कीमत और बढ़ जाती है।
ट्राउट मछली पालन एक रोमांचक क्षेत्र है जिसमें सरकार भी उत्साहपूर्वक सहायता प्रदान कर रही है। इस क्षेत्र में ब्राउन ट्राउट और रेनबो ट्राउट जैसी प्रमुख प्रजातियाँ विशेष महत्व रखती हैं। ये मछलियाँ विभिन्न महीनों में परिपक्व होती हैं, और पालकों को इसकी उचित पहचान करने की जरूरत होती है।
इस क्षेत्र में सरकारी मदद और योजनाएं भी उपलब्ध हैं। ट्राउट पालन के लिए बड़े स्तर पर उचित विकास को समर्थन प्रदान किया जाता है। रेसवे, जिनमें मछली पाली जाती है, की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसके अलावा, दानों के लिए भी अलग से मदद प्राप्त की जा सकती है।
ट्राउट मछली पालन के लिए लोन भी उपलब्ध होता है, जिससे पालकों को आर्थिक सहायता मिलती है। इस तरह, किसानों को सरकारी सहायता के माध्यम से आर्थिक रूप से मजबूती मिलती है, जिससे उन्हें अधिक उत्पादन करने की संभावना होती है।