क्या आप जानते हैं कि पांडवों में सबसे बड़े भाई युधिष्ठिर की पत्नी कौन थीं? महाभारत की कथा में उनकी भूमिका बहुत कम दिखती है, और उन्हें लेकर कई सवाल उठते हैं। आमतौर पर द्रौपदी को युधिष्ठिर की पत्नी माना जाता है, लेकिन वह तो सभी पांच पांडवों की संयुक्त पत्नी थीं। वास्तव में, युधिष्ठिर की दूसरी पत्नी थीं, जिनका नाम देविका था। देविका से युधिष्ठिर का एक पुत्र भी था, जिसका नाम यौधेय था।

देविका का परिचय और विवाह

देविका एक क्षत्रिय राजकुमारी थीं और महाबली राजा गोवासेन की बेटी थीं। युधिष्ठिर और देविका का विवाह कब हुआ, इसे लेकर स्पष्टता नहीं है। कुछ शास्त्रों में कहा गया है कि उनका विवाह तब हुआ जब युधिष्ठिर युवराज बने, जबकि कुछ अन्य स्रोतों के अनुसार, यह विवाह कुरुक्षेत्र युद्ध के बाद हुआ। हालांकि देविका का महाभारत के मुख्य घटनाक्रमों में ज़िक्र कम मिलता है, लेकिन उन्हें महाभारत की रहस्यमयी महिलाओं में से एक माना जाता है।

वनवास के दौरान देविका

जब पांडवों को 14 वर्षों के वनवास का दंड मिला, तब युधिष्ठिर और देविका का विवाह हो चुका था। हालांकि, देविका युधिष्ठिर के साथ वनवास पर नहीं गईं। उन्हें मां कुंती के पास ही हस्तिनापुर में छोड़ दिया गया था। महाकाव्यों में उनकी इस अनुपस्थिति पर बहुत चर्चा होती है, लेकिन यह स्पष्ट है कि देविका उस कठिन समय में युधिष्ठिर के साथ नहीं रहीं।

युधिष्ठिर और देविका का पुत्र

युधिष्ठिर और देविका का एकमात्र पुत्र यौधेय था, जिसने महाभारत के युद्ध में हिस्सा लिया और वीरगति प्राप्त की। महाभारत के अंत में, पांडवों के सभी पुत्र मारे गए थे, केवल उत्तरा के गर्भ में पल रहे परीक्षित जीवित बचे थे। यही कारण है कि युधिष्ठिर ने अंत में परीक्षित को हस्तिनापुर का राजा घोषित किया।

देविका का धार्मिक महत्व

देविका को एक पवित्र और धार्मिक महिला माना जाता था। वह भगवान कृष्ण की भक्त थीं और हमेशा कठिन समय में उनसे प्रार्थना करती थीं। उन्हें भगवान यम की पत्नी माता उर्मिला का अवतार भी माना गया है। महाभारत में देविका और द्रौपदी के बीच अच्छे संबंधों का उल्लेख मिलता है, दोनों महिलाएं एक-दूसरे का सम्मान करती थीं।

देविका का स्वर्गारोहण

जब युधिष्ठिर अपने भाइयों के साथ स्वर्गारोहण के लिए मेरु पर्वत की ओर गए, तब देविका का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता। कुछ कथाओं में कहा जाता है कि देविका इस यात्रा के दौरान शुरू में ही गिरकर मृत्युलोक चली गईं, जबकि कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार उनकी मृत्यु स्वर्गारोहण के बाद हुई।