आपको बता दें की इस साल दिसंबर माह में राजस्थान की 7 सीटों पर विधान सभा चुनाव हो सकते हैं। हालांकि पिच विधान सभा चुनाव में कांग्रेस ने इन सात सीटों में से चार पर जीत हासिल की थी। अब राजस्थान कांग्रेस के साथ दो महत्वपूर्ण चीजें हैं।
एक यह की राजस्थान में कांग्रेस को अपनी दौसा, देवली, रामगढ़ और झुंझुनू नामक चारों सीटों को फिर से बचाना है और दूसरी यह की पिछले चुनाव में कांग्रेस को मिले मोमेंटम को बरक़रार रखना है। इन दोनों चीजों के लिए अब पायलट गुट के नेताओं सहित खुद सचिन पायलट की साख दांव पर लगी हुई है। इसका कारण यह है की यदि रामगढ़ सीट को छोड़ दें तो बाकी की तीनों सीट पायलट गुट के नेताओं की ही हैं। बाटा दें की 2020 में इन तीनों सीटों के नेता बागी होकर गहलोत का साथ छोड़कर पायलट गुट में शामिल हो गए थे।
पायलट के प्रभाव वाली सीटें
एक बात यह भी है की सचिन पायलट का प्रभाव पूर्वी राजस्थान में सबसे ज्यादा माना जाता है। बता दें की इन चारों में से दो सीट 2 सीट दौसा और देवली-उनियारा असल में पूर्वी राजस्थान का ही हिस्सा हैं। सचिन पायलट के इस हिस्से में प्रभाव की शुरुआत उनके पिता के समय से ही हो गई थी। बाद में उनके पिता के देहांत के बाद उनकी मां रमा पायलट भी यहां से सांसद रहीं थीं। पायलट भी अपने भाषणों में कई बार इस क्षेत्र को कांग्रेस का गढ़ कह चुके हैं।
इस प्रकार बने कांग्रेस के केंद्र बिंदु
आपको बता दें की 2018 में राजस्थान में 1 विधानसभा तथा 2 लोकसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे। इनमें मांडलगढ़ विधानसभा तथा दो लोकसभा सीट अलवर और अजमेर शामिल थीं। इस समय पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष पायलट ही थे। 2013 में प्रदेश अध्यक्ष का पदभार सँभालने के बाद कांग्रेस के लिए यह पहला मौक़ा था जब कांग्रेस ने किसी चुनाव में जीत हासिल की हो। इस समय पर सचिन पायलट कांग्रेस के केंद्र बिंदु बन गए थे। अब यह उपचुनाव फिर से सचिन के सियासी कायाकल्प तथा राजस्थान की राजनीति में उनके उड़ान भरने का बेहतरीन मौक़ा हो सकते हैं।