नई दिल्ली। संगम नगरी प्रयागराज इन दिनों 13 अखाड़ों के नागा साधु से सजी हुई है। इस जगह पर लाखों की संख्या में भक्त डूबकी लगाने पहुंच रहे हैं। लेकिन इन सबसे नागा साधु का शाही स्नान सबसे ज्यादा आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। जिसमें ये लोग संसार की मोह-माया को छोड़ भगवान शिव की आराधना में लगे रहते हैं, महाकुंभ के दौरान इन नागा साधु को शाही स्नान से पहले 17 शृंगार करना पड़ता हैं, जो उनके आंतरिक और बाह्य शुद्धिकरण का प्रतीक माना जाता हैं।

 जानिए क्या हैं इन 17 शृंगार का महत्व

प्रयागराज में महाकुंभ 2025 का आयोजन 13 जनवरी यानी सोमवार से शुरू होकर 26 फरवरी को महाशिवरात्रि के दिन तक चलेगा। इस महाकुंभ में देश विदेश के लोग डुबकी लगाने के लिए पहुंच रहे हैं, लेकिन इनके बीच सबसे पहले किया जाने वाला शाही स्नान नागा साधुओं का होता है। जो सबसे ज्यादा आकर्षण का केंद्र बना होता हैं शाही स्नान के दौगार यह नागा साधु पूरे श्रृंगार के साथ सजे होते है। आइए क्या है उनका श्रृंगार

नागा साधुओं के 17 श्रृंगार

भभूत (पवित्र भस्म)

लंगोट (त्याग की निशानी)

चंदन (शिव का प्रतीक)

चांदी या लोहे के पैरों के कड़े (सांसारिक मोह से मुक्ति का प्रतीक)

पंचकेश (पांच बार लपेटे गए बाल)

अंगूठी (पवित्रता का प्रतीक)

फूलों की माला (भगवान शिव की पूजा का प्रतीक)

हाथों में चिमटा (सांसारिक मोह का त्याग)

डमरू (भगवान शिव का अस्त्र)

कमंडल (पानी का पात्र, भगवान शिव का)

गुंथी हुई जटा (धार्मिक प्रतीक)

तिलक (धार्मिक चिन्ह)

काजल (आंखों की सुरक्षा)

हाथों का कड़ा (धार्मिक एकता का प्रतीक)

विभूति का लेप (शिव का आशीर्वाद)

रोली का लेप

रुद्राक्ष (भगवान शिव की माला)

इस तरह के 17 श्रृंगार करने के बाद ही नागा साधु शाही स्नान के लिए संगम की ओर बढ़ते हैं, जहां उनका उद्देश्य शरीर, मन और आत्मा की शुद्धि करना होता है। इस स्नान को करके बाद नागा साधुओं की दीक्षा और तपस्या का उद्देश्य शुद्धिकरण होता है, और वे शाही स्नान के बाद पवित्र नदी में डुबकी लगाकर अपनी साधना को पूरा करते हैं।

महाकुंभ 2025 का महत्व

प्रयागराज में महाकुंभ 13 जनवरी से शुरू होकर 44 दिनों तक चलेगा. पहले शाही स्नान का आयोजन 14 जनवरी को मकर संक्रांति के दिन होगा, जिसके बाद आम लोग भी पवित्र डुबकी लगाएंगे।