नई दिल्ली। सरकारी स्कूलों में लगातार शिक्षकों की लापरवाही के नजारे सोशल मीडिया पर देखने को मिलते रहते है। जिसमें शिक्षकों की लगातार स्कूलों में अनुपस्थित होना, या फिर कुर्सी पर बैठकर अराम की नीद लेते रहना, इनता ही नही बेसिक स्कूलों में इनका देर से आना और जल्दी घर चले जाना, ये शिक्षकों की आम बीमारी हो चुकी है। लेकिन अब इसका इलाज उत्तरप्रदेश सरकार ने ढूंढ निकाला है। जो शिक्षक के लिए भारी पड़ सकता है। अब मुख्यमंत्री की सीधी नजर इन शिक्षकों पर होगी।

दीपावली के बाद से उत्तर प्रदेश के हर स्कूलों में सख्त निर्देश और समीक्षाओं का दौर शुरू होने वाला है। अब प्रदेश के हर स्कूलों में शिक्षकों की इस साल की उपस्थिति के आंकड़ों की जांच की जाएगी। इस प्रकरण में स्थानीय शिक्षा विभाग के कार्यालय की भूमिका सिर्फ ऊपर से प्राप्त आदेश का अनुपालन कराने की रहेगी।

उत्तर प्रदेश सरकार इस समय कई योजनाओं और परियोजनाओं पर काम कर रही है और इन सभी की निगरानी व मूल्यांकन के लिए चार नए विभागों को बनाया गया है। जो सामाजिक कल्याण और सरकारी मंत्रालयों द्वारा चलाए जा रही छात्रवृत्ति, बेसिक शिक्षा विभाग में शिक्षकों की उपस्थिति, खाद्य आपूर्ति विभाग, पिछड़ा वर्ग कल्याण से संबंधित धान खरीद के  बारे में जांच की जाएगी।

शिक्षा विभाग मे लगातार शिक्षको की लापरवाही को देखते हुए  संबंधित विभागों ने जांच की तैयारी शुरू कर दी है। इसके लिए बेसिक शिक्षा विभाग सभी शिक्षकों की उपस्थिति, अनुपस्थिति और उनके स्कूल में पहुंचने के समय आदि से संबंधित आंकड़े जुटाने में लगा हुआ हैं।

गौरतलब है कि इससे पहले शिक्षकों की उपस्थिति की जानकारी के बारे मे पता लगाने के लिए रजिस्टर ऑनलाइन किया जा रहा था। लेकिन प्रदेशभरके शिक्षको ने इसे लेकर आंदोलन चलाया। जिसके बाद तीन माह के लिए इस निर्देश को स्थगित कर दिया गया था। अब शासन ने शिक्षकों की कार्यप्रणाली को सुधारने व उनके स्कूलों में योगदान से बच्चों को मिलने वाले लाभ का मूल्यांकन लेन का निर्णय लिया है।

बीएसए प्रवीण कुमार तिवारी कहते हैं कि जनपद में नियमित रूप से स्कूलों का निरीक्षण हो रहा है। इसके लिए समन्वयकों, खंड शिक्षाधिकारियों की टीम पूरी तरह से चांज के लिए सक्रिय है।