दिवाली के पर्व पर हर घर में लक्ष्मीजी की पूजा के लिए विशेष तैयारियाँ की जाती हैं। इस अवसर पर लोग देवी को अर्पण के लिए तरह-तरह की वस्तुएँ खरीदते हैं।
लेकिन राजस्थान के थार के रेगिस्तान में एक अनोखी परंपरा है, जहाँ देवी लक्ष्मी को ‘कोठींबा’ नामक सूखी सब्ज़ी अर्पित की जाती है। इस परंपरा का खास सांस्कृतिक और ज्योतिषीय महत्व है, जो इसे और भी दिलचस्प बनाता है।
कोठींबा को मां लक्ष्मी को करें अर्पित
कोठींबा, जिसे ‘काचरी’ भी कहा जाता है, थार के बीकानेर और आसपास के क्षेत्रों में उगाई जाने वाली एक विशेष सूखी सब्ज़ी है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, देवी लक्ष्मी को यह सब्ज़ी अत्यंत प्रिय है, इसलिए दिवाली के दौरान इसे उनके चरणों में अर्पित किया जाता है। इस सब्ज़ी का उत्पादन मुख्यतः राजस्थान के रेगिस्तानी क्षेत्रों में होता है, और दिवाली के समय इसकी मांग में जबरदस्त बढ़ोतरी देखने को मिलती है। पूजा के साथ-साथ, इसे कई लोग अपने घरों में भोजन के रूप में भी उपयोग करते हैं, खासकर स्वादिष्ट चटनी बनाने के लिए।
ज्योतिषीय और सांस्कृतिक महत्व
ज्योतिषाचार्य युगल नारायण रंगा के अनुसार, कोठींबा का धार्मिक और औषधीय महत्व है। प्राचीन काल से इसे केवल रेगिस्तानी क्षेत्रों में उगाया जाता था और इसका उपयोग औषधि के रूप में भी किया जाता रहा है। दिवाली पर देवी लक्ष्मी को इसे अर्पित करने की परंपरा सदियों पुरानी है। यह मान्यता है कि लक्ष्मीजी की पूजा में कोठींबा चढ़ाने से धन-संपत्ति की वृद्धि होती है और घर में समृद्धि आती है।
काचरी की प्रसिद्ध चटनी
राजस्थान की यह खास सब्ज़ी सिर्फ पूजा के लिए ही नहीं, बल्कि इसे विभिन्न व्यंजनों में भी प्रयोग किया जाता है। काचरी से बनने वाली चटनी यहाँ की एक खासियत है, जो न केवल स्थानीय बल्कि विदेशी पर्यटकों के बीच भी लोकप्रिय है। इसका खास गुण यह है कि यह कई दिनों तक खराब नहीं होती और स्वाद में अद्वितीय होती है। बीकानेर के बाजारों में दिवाली के समय इसकी चटनी की मांग खासतौर पर बढ़ जाती है।
स्वास्थ्य लाभ और बाजार की स्थिति
स्वाद और धार्मिक महत्व के अलावा, कोठींबा स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। इसमें मौजूद पोषक तत्व पाचन शक्ति को बढ़ाते हैं, सर्दी-खांसी से राहत दिलाते हैं, और रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत बनाते हैं। बाजार में कोठींबा 30-40 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बिकती है, और दिवाली के दौरान इसकी मांग बढ़ने से इसका व्यापार भी खूब फलता-फूलता है।