नई दिल्ली: किन्नरों की जिंदगी से जुड़े ऐसे कई रहस्यमई पहलु हैं जिनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते है। किन्नर को समाज में आज से ही नही सदियों से अलग-थलग रखा गया हैं। जो अपने ही लोगों के बीच रहकर जिंदगी गुजर बसर करते है। ये लोग लोगों की शादियो में जाकर नाचते गाते नजर आते है।
लोगों के शुभकार्यक्रमों में हमेशा शरीक रहने वाले किन्नर भी शादी करते है इस बात पर यकीन करना मुश्किल है। लेकिन यह बात सच है कि किन्नरों भी शादी करते है। वो भी एक रात के लिए दुल्हन बनते हैं, हालांकि शादी के बाद वो अगले ही दिन विधवा भी हो जाते है।
किन्नर क्यों करते हैं एक रात के लिए शादी ?
किन्नर या हिजड़े ना तो पुरुष होते हैं और ना ही महिला। जिसके चलते समाज में उन्हें हीन भावना से देखा जाता है। इसलिए वो अपने समुदाय के साथ समाज से दूर रहते है। माना जाता है कि किन्नरएक दिन के लिए शादी करते हैं वो केवल एक रात के लिए दुल्हन बनते हैं।
किन्नरों की शादी किसी इंसान से नहीं बल्कि उनके अपने भगवान से होती है। किन्नरों के देवता अरावन हैं,जो अर्जुन और नागकन्या उलूपी के पुत्र थे। किन्नर, अरावन की पूजा करते हैं और उनके साथ विवाह भी करते हैं। दक्षिण भारत में इन्हें अरावनी कहा जाता है।
विधवा हो जाते हैं किन्नर
तमिल नव वर्ष की पहली पूर्णिमा से किन्नरों के विवाह का उत्सव शुरु होता है। जो हर साल तमिलनाडु के कूवगाम में मनाया जाता है। यह उत्सव 18 दिनों तक धुमधाम के साथ मनाया जाता है। 17 वें दिन किन्नरों शादी करते है. वे दुल्हन की तरह सोलह श्रृंगार करते हैं, उन्हें किन्नरों के पुरोहित उन्हें मंगलसूत्र भी पहनाते हैं।
विवाह के अगले दिन सभी किन्नर मिलकर अपने देवता अरावन या इरवन देवता की मूर्ति को पूरे शहर में घुमाते है इसके बाद उसे तोड़ दिया जाता है. यह इसलिए किया जाता है ताकि किसी को भी किन्नर के रूप में जन्म ना लेना पड़े। इसके बाद किन्नर विलाप करते हुए अपना एक एक श्रृंगार उतारकर एक विधवा का रूप धारण कर लेते है।