आपने बहुत बार देखा होगा कि जब भी घर में कोई शुभ कार्य होता है जैसे शादी-विवाह या बर्थडे पार्टी या कुछ और, उसमें हम किसी को शगुन का लिफाफा देते समय 50, 100, 200, 500 या 2000 रुपए के नोट के साथ एक रुपए का सिक्का अवश्य रखते हैं। यदि एक रुपया साथ नहीं रखा जाए तो उसे अशुभ माना जाता है और घर के बूढ़े-बुजुर्ग डांट भी देते हैं। जानिए ऐसा क्यों होता है और क्यों शगुन में एक रुपया रखना अनिवार्य माना गया है।
एक नहीं, कई वजह हैं शगुन में एक रुपया देने की
धार्मिक तथा शुभ कार्यों में एक रुपया साथ देने के पीछे कई कारण हैं। पहला कारण यही है कि शून्य को अंत का प्रतीक माना गया है, अर्थात् विनाश का जबकि एक का अंक नई शुरूआत का प्रतीक है। ऐसे में जब हम किसी को लिफाफा देते समय एक रुपया साथ देते हैं तो उसके पीछे यही मनोकामना होती है कि उसके जीवन में एक नई शुरूआत हो।
गणित के हिसाब से देखा जाए तो भी इस परंपरा के पीछे की एक वजह हमारी समझ में आती है। गणित में सभी संख्याओं को विभाज्य और अविभाज्य दो कैटेगरीज में बांटा गया है। इसीलिए 50, 100, 200, 500 या 2000 की संख्या को भी विभाज्य माना जाता है क्योंकि इनमें किसी न किसी अंक का पूरा भाग जाता है परन्तु यदि इनके आगे एक रुपया जोड़ दिया जाए तो ये अविभाज्य संख्या बन जाती है। ऐसा करने के पीछे यही कारण है कि हमारा आशीर्वाद और शुभकामनाएं सदैव अविभाज्य बने रहें, इसलिए एक रुपया साथ में दिया जाता है।
वास्तु के हिसाब से देखें तो एक रुपया का सिक्का धातु का बना होता है जो पंचतत्वों में थल या मिट्टी का प्रतीक है। मिट्टी यानि स्थिरता और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद, माना जाता है कि नोट के साथ एक रुपया रख देने से उसमें मिट्टी की स्थिरता आ जाती है और वह आदमी लगातार तरक्की करने लगता है।
इस तरह आपने देखा कि शगुन और धार्मिक कर्मकांडों में एक रुपया साथ में अवश्य दिया जाता है। ऐसा करना शुभ माना जाता है और इसके पीछे कई मान्यताएं भी हैं जो इस परंपरा की प्राचीनता और इसके अर्थ को बताती है।
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