पौराणिक मान्यता के अनुसार, भगवान कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ द्वारका में रहते थे। एक दिन देवराज इंद्र ने भगवान कृष्ण से दैत्यराज नरकासुर के अत्याचारों से त्रस्त देवताओं की मदद की गुहार लगाई। उस दैत्य नरकासुर ने वरुण का छत्र, अदिती के कुंडल और कई देवताओं की अमूल्य मणियों को छीन लिया था।
इसके अलावा, उस दैत्य ने अनेक राजाओं की पुत्रियों और आमजन की कन्याओं का भी अपहरण कर लिया था। जिसके कारण आमजन से लेकर देवता लोग उससे काफी परेशान थे। उन देवताओं की याचना सुनकर, भगवान कृष्ण अपनी पत्नी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर सवार होकर नरकासुर के राज्य प्रागज्योतिषपुर पहुंचे।
कैसे भगवान ने किया था नरकासुर का अंत
लेकिन नरकासुर को यह शाप दिया गया था कि उसकी मृत्यु किसी स्त्री के हाथों होगी। इसलिए भगवान कृष्ण ने सत्यभामा को अपना सारथी बनाकर नरकासुर का अंत किया था। इस विजय के दिन को ही नरक चतुर्दशी के रूप में मनाया जाता है।
भगवान ने 16,000 कन्याओं को कराया था मुक्त
इस दिन भगवान कृष्ण ने न केवल नरकासुर का वध किया था, बल्कि उसकी कैद में बंद लगभग 16,000 कन्याओं को भी मुक्त कराया था। इसलिए खुशी में इस दिन दीप जलाए गए और दीपदान की परंपरा शुरू हुई थी।
नरक चतुर्दशी के दिन की परंपराएं
नरक चतुर्दशी के दिन कई धार्मिक परंपराएं निभाई जाती हैं, जिनमें यम देव के नाम का दीपक जलाना, तेल मालिश और मां काली की पूजा करना प्रमुख हैं। इसके अलावा इस दिन 14 दीपक जलाने की भी विशेष मान्यता है, जिनका स्थान और दिशा विशेष मानी जाती है।
खास उपाय:
पहला दीया घर के बाहर दक्षिण दिशा में।
दूसरा दीया सुनसान देवालय में।
तीसरा दीया मां लक्ष्मी के समक्ष।
चौथा दीया तुलसी माता के पास।
अन्य दीयों को पीपल, मंदिर, घर के कूड़ेदान, बाथरूम, छत, खिड़की, और रसोई में जलाया जाता है।