नई दिल्ली। भारतीय ऑटोमोबाइल मार्केट नेनो ने एक बार फिर से अपनी धाक जमाने की कोशिश की है। परिवार के साथ लंबी यात्रा करने के लिए यह कार सबसे बेस्ट साबित हुई है। छोटी सी लखटकिया कार को हर किसी ने काफी पसंद किया है।
इस कार को पेश करने के लिए रंतन टाटा ने अहम भूमिका निभाई है। साल 2009 में हर किसी भारतीय के घर पर यह कार हो इसके लिए टाटा मोटर्स कंपनी ने टाटा नैनो की कीमत इतनी कम रखी थी कि हर वर्ग के लोग इस कार को खरीदकर अपने सपनो का साकार कर सके। जिसके चलते यह लखटकिया गरीबों की कार के तौर पर पहचान बनाने लगी। हालांकि, कुछ साल में यह कार मार्केट से गायब हो गई जिसके चलते कंपनी ने प्रोडक्शन कम कर दिया। वहीं, BS-IV उत्सर्जन मानदंड लागू होने के बाद नैनो कार को बंद करने का फैसला किया गया।
रतन टाटा ने नैनो को लेकर किस्सा साझा किया
Ratan tata के द्वारा लॉच की जाने वाली इस कार का मकसद ही यही था कि मिडिल क्लास के लोगो के लिए यह वरदान बनकर साबित हो। अपने सपने को साकार करने के लिए रतन टाटा ने स्कूटर को कार में तब्दील कर दिया। जिससे पूरा परिवार एक साथ बैठकर अराम के साथ सफर कर सके।
Alto से भी कम कीमत के साथ पेश हुई TATA Nano उन आम लोगो के लिए थी जो कार के सपने तो देखते है, लेकिन खरीदने में सक्षम नहीं है। हालांकि, रतन टाटा का यह सपना सच होकर भी बुरी तरह बिखर गया। टाटा नैनो के नाकाम होने की वजह इसके टैग को माना गया। तमाम एक्सपर्ट यह मानते हैं कि लोगों ने गरीबों की कार के टैग या लखटकिया कार के नाम को हीन भावना से जोड़ कर देखा। यही वजह है कि नैनो कार फ्लॉप हो गई।