अपने अब तक कई प्रकार के सांपो को देखा ही होगा और आप कुछ इस प्रकार के लोगों को जानते होंगे ही जो सांप के काटे इंसान का उपचार करते हों। अक्सर हमारी ही किसी गलती से सांप हमें काट डालते हैं। अतः आज का सामान्य व्यक्ति सांपो से काफी ज्यादा डरता है। लेकिन आज हम आपको भारत की ही एक ऐसी जगह के बारे में बता रहें हैं। जहां के बच्चे जहरीले सांपो से खिलौनों की तरह खेलते हैं। आइये अब आपको इस स्थान तथा इन लोगों के बारे में विस्तार से बताते हैं।
तमिलनाडु की है यह जनजाति
आपको बता दें की भारत के राज्य तमिलनाडु में इरुला जनजाति निवास करती है। इस जनजाति के लोग सांप का जहर निकालने का कार्य करते हैं। इसके बाद में इसी जहर से वैज्ञानिक लोग जहर काटने वाली दवा का निर्माण करते हैं। मना जाता है की इस जनजाति के लोगों की संख्या वर्तमान में 1 लाख लोगों से अधिक है। इन लोगों के लिए 1978 में इरुला स्नैक कैचर्स इंड्रस्ट्रियल कोऑपरेटिव सोसायटी का निर्माण हुआ था। जिसके बाद ये लोग सांपो का जहर निकालने का कार्य अधिकार पूर्वक करने लगे।
अब काफी लोग करते हैं काम
माना जाता है की शुरुआत में सांपो का जहर निकालने का कार्य काफी गिनेचुने लोग ही करते थे लेकिन समय के साथ बाद में काफी लोग इसी कार्य को करने लगे। ख़ास बात यह है की इस जनजाति में महिलायें भी सांपो का जहर निकालने का कार्य करती हैं। हालांकि अब इस कार्य को करने वाले लोगों की तादात में कुछ कमी आई है।
बता दें की हमारे देश में सांपो का जहर निकालने के लिए चार प्रकार के सांप पकड़ने की अनुमति दी हुई है। इनमें किंग कोबरा, रसेल वाइपर, करैत और इंडियन सॉ स्क्रेल्ड वाइपर जैसे जहरीले सांप हैं। ये इतने जहरीले होते हैं की इनके जहर की एक बूंद भी किसी को मौत की नींद सुला सकती है।
खिलौनों की तरह खेलते हैं बच्चे
इरुला जनजाति के बच्चों के लिए सांपो को पकड़ना एक खेल के जैसा है। जैसे ही इन्हें किसी सांप का पता लगता है। ये बच्चे तुरंत उस स्थान पर पहुंच जाते हैं और झट से सांप को पकड़ लेते हैं। इनके पास में यह ख़ास कला है की ये सांप को उसके गले से पकड़ कर सीधे उसके मुंह से जहर को निकलवा लेते हैं। बता दें की समिति के लोगों को सांपो को पकड़ने के लिए सरकारी लाइसेंस मिला हुआ है। इन्हें प्रतिवर्ष 13 हजार सांप पकड़ने की अनुमति है। इससे इन लोगों को 25 करोड़ रुपये तक की आमदनी हो जाती है।