इस साल 2024 में तिलहनी फसलों के रकबे में बढ़ोतरी हुई है, ये क्षेत्र कृषि अर्थव्यवस्था में एक बड़ी भूमिका निभाता है। सूरजमुखी, मूंगफली, सोयाबीन, अरंडी, तिल, राई और सरसों, अलसी और कुसुम प्रमुख परंपरागत रूप से उगाने वाली तिलहनी फसलें होती हैं।

बता दें कि सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5050 रुपये प्रति क्विंटल है। यदि किसान अच्छे उत्पादन और अपने क्षेत्र के मुताबिक सरसों की सही किस्म का चयन करके सरसों की खेती करें तो वे काफी अच्छा मुनाफ़ा कमा सकते हैं। तो चलिए अब आपको सरसों की 10 उन्नत किस्मों के बारे में बताते हैं….

सरसों की उन्नत किस्में

राज विजय सरसों-2 – आपको बता दें कि सरसों की ये किस्म मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के इलाकों के लिए उपयुक्त होती है और ये फसल 120 से 130 दिनों में तैयार हो जाती है। यदि आप अक्टूबर में इसकी बुवाई करेंगे तो 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार होगी, जिसमें तेल की मात्रा 37 से 40 प्रतिशत होती है।

पूसा सरसों 27 – सरसों की इस किस्म को भारतीय कृषि अनुसंधान केंद्र, पूसा, दिल्ली ने विकसित किया है और ये किस्म अगेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। किसान तय महीनों से पहले भी इस किस्म की खेती कर सकते हैं। इसकी फसल को 125 से 140 दिनों में पककर तैयार किया जा सकता है। जिसमें तेल की मात्रा 38 से 45 प्रतिशत तक होती है।

पूसा सरसों आर एच 30 – सरसों की इस किस्म को हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी राजस्थान क्षेत्रों के लिए सबसे बेहतर माना जाता है। ये किस्म सिंचित और असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त होती है, और इस फसल को 130 से 135 दिनों में तैयार किया जा सकता है। यदि 15 से 20 अक्टूबर तक इस किस्म की बुवाई करें तो उपज 16 से 20 क्विंटल प्रति हैक्टेयर मिलती है। जिसमें तेल की मात्रा करीब 39 प्रतिशत होती है।

पूसा बोल्ड – आपको बता दें कि सरसों की ये किस्म राजस्थान, गुजरात, दिल्ली और महाराष्ट्र के इलाकों में उगाई जाती है। ये फसल 130 से 140 दिनों में कटने के लिए तैयार होती है, जिसमें तेल की मात्रा लगभग 42 प्रतिशत तक होती है।

पूसा डबल जीरो सरसों 31 – ये किस्म राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू-कश्मीर के क्षेत्रों में उगाई जाती है। इस फसल 135 से 140 दिनों में तैयार कर सकते हैं, और इसमें तेल की मात्रा लगभग 41 प्रतिशत होती है।
क्षारीय क्षेत्रों में पाई जाने वाली सरसों की किस्म

सीएस 54 – बता दें कि सरसों की इस किस्म से कम तापमान में भी अच्छा उत्पादन किया जा सकता है। जिसको तैयार होने में 120 से 130 दिन का समय लगता है और इसको 16 से 17 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन मिलता है। जिसमें तेल की मात्रा करीब 40 प्रतिशत होती है।

लवणीय क्षेत्रों में सरसों की किस्म
नरेंद्र राई 1 – सरसों की इस किस्म की फ़सल को 125 से 130 दिनों में तैयार किया जा सकता है। इसकी उत्पादन क्षमता 11 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और इसमें तेल की मात्रा करीब 39 प्रतिशत होती है।

सरसों की संकर किस्में
एन.आर.सी.एच.बी 101 – सरसों की इस किस्म को अनुसंधान निदेशालय, भरतपुर ने विकसित किया है, जो कि पिछेती बुवाई के लिए उपयुक्त है। पिछेती बुवाई की फसलों को देरी से बुवाई करने के बाद भी इनकी उत्पादन क्षमता प्रभावित नहीं होती है। इस फ़सल को तैयार होने में 130 से 135 दिनों में तैयार किया जाता है, जिसमें तेल की मात्रा 38 से 40 प्रतिशत होती है।

डीएमएच–11 – सरसों की ये किस्म रोग और कीटों के प्रति ज़्यादा प्रतिरोधक है। इसको 145 से 150 दिनों में तैयार किया जा सकता है, इसकी उत्पादन क्षमता 17 से 22 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

पीएसी–432 – सरसों की ये किस्म मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे राज्यों में की जाती है। इस फसल को तैयार होने में 130 से 135 दिन लगते हैं।