नई दिल्ली। देश में सहकारिता आंदोलन को गति देने के लिए सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। इसके लिए सरकार मौजूदा थोक पेट्रोल/डीजल डीलरों को जो कि थोक लाइसेंसधारी पैक्स (PACS) हैं उनको खुदरा आउटलेट खोलने के लिए सरकार मंजूरी देने जा रही है। ये फैसला पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने लिया है। इस फैसले के बाद अब जो पैक्स थोक पेट्रोल/डीजल बेचने के लाइसेंस धारी है वे पंप इस आदेश के बाद रिटेल में भी प्रोडक्ट को बेचने की पात्रता रख पाएंगे। दरअसल सरकार देश में सहकारिता आंदोलन को सशक्त बनाने के लिए ये कदम उठा रही है, इतना ही नहीं सरकार आने वाले समय में पैक्स को भी एलपीजी डिस्ट्रीब्यूटर बनाने पर विचार कर रही है।

सरकार के इस फैसले से पेट्रोल और डीजल के वर्तमान में थोक लाइसेंस रखने वाले  पैक्स (PACS) को भी आनेवाले समय में रिटेल पंप खोलने की प्राथमिकता दी जाएगी। इतना ही नहीं पैक्स भी वह एलपीजी जो घरों में कुकिंग गैस उपयोग होती है, उस रसोई गैस का डिस्ट्रीब्यूशन कर सकेंगे। सरकार का यह फैसला सहकारिता आंदोलन को मज़बूती प्रदान करने के लिए है। केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह की इस विषय में केंद्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री हरदीप सिंह पुरी के साथ विशेष बैठक हुई, जिसमें यह निर्णय लिया गया है।

पेट्रोलियम मंत्रालय ने निर्णय लिया है कि पैक्स को डिस्ट्रीब्यूटरशिप के लिए नियमों में जिन बदलावों की ज़रूरत होगी वह भी किया जाएगा, जिससे पैक्स भी पेट्रोल/डीजल के साथ एलपीजी की डीलरशिप ले सके। सरकार की प्राथमिकता होती है कि आवंटन में स्वतंत्रता सेनानी एवं स्पोर्ट्स कोटे के लोगों को पहले मौका मिले। वर्तमान में सरकार की कोशिश है कि फॉसिल फ्यूल में खर्च होने वाले विदेशी मुद्रा पर रोक लगे इसके लिए सरकार पेट्रेल डीज़ल में एथनॉल मिक्स करा रही है। इसके लिए सरकार ने निर्णय लिया है कि चीनी मिलों में पेराई के बाद बचने वाला अवशेष जिससे एथनॉल बनता है उसके लिए सहकारी चीनी मिलों को विशेष प्रोत्साहन दिया जाएगा, पैदा होने वाले एथेनॉल की सरकार खरीदी भी करेगी। आपको बतादें पेट्रोलियम मंत्रालय एथेनॉल ब्लेंडिंग कार्यक्रम के तहत सहकारी चीनी मिलों को एथेनॉल खरीदी में निजी कंपनियों के मुकाबले प्राथमिकता देने का निर्णय लिया है।

सरकार लगातार सहकारी समितियों को बढ़ावा देने के लिए प्रयासरत है इसके लिए सरकार की ओर से प्राथमिक कृषि कर्ज समितियों (पैक्स) को सशक्त बनाने पर ज़ोर दिया जा रहा है। सहकारी समितियों के लिए बायलॉज बनाए गए हैं, सरकार की कोशिश है कि देश के मौजूदा एक लाख से अधिक समितियों को ग्रामीण आर्थिक विकास का केंद्र बनाया जाए, जो लगभग 25 से अधिक गतिविधियों के माध्यम से देशभर के 13 करोड़ से भी अधिक किसानों की इनकम बढ़ाने में मददगार साबित हो सके। सहकारिता मंत्रालय सहकारी समितियों के कम्प्यूटरीकरण पर ज़ोर दे रही है। इसके लिए सरकार की सोशिश है कि सभी समतियों को एकीकृत नेशनल सॉफ्टवेयर के माध्यम से नाबार्ड से जोड़ा जा सके।

देश में सहकारिता आंदोलन को व्यापक रूप से संचालित करने के लिए सहकारिता मंत्रालय ने इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के साथ नाबार्ड और सीएससी ई-गवर्नेंस जैसी सर्विसेज के साथ में एक समझौता किया है। इसका मकसद है सीएससी की 300 से भी अधिक ई-सेवाओं को सहकारी समितियों के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में घर-घर तक पहुंचाया जाए।