भंडारा कर जरूरतमंद लोगों को भोजन कराना या सार्वजानिक रूप से प्रसाद का वितरण करना सनातन धर्म का अभिन्न अंग रहा अहइ। कई बार बहुत से लोग अपने जन्मदिन या विवाह की वर्षगांठ के अवसर पर इस प्रकार का कार्य करते देखें जाते हैं। वहीं कुछ लोग बच्चे के जन्म पर या किसी अन्य शुभ अवसर पर भंडारे का कार्यक्रम कर लोगों को भोजन कराते हैं।
कई बार भंडारे का कार्य नवरात्र आदि शुभ तिथियों पर भी बहुत से लोग करते हैं। बहुत से लोग शिविर लगाकर साधु संतो को भोजन प्रसाद का वितरण करते हैं। लेकिन इनमें कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो साधु नहीं होते हैं लेकिन फिर भी ये लोग इस प्रकार के शिविर में भोजन कर लेते हैं। हालही में प्रेमानंद महाराज ने इसी चीज पर अपने विचार देते हुए बताया है की कहीं भी रुक कर मुफ्त में भोजन कर लेना कितना खतरनाक हो सकता है।
प्रेमानंद महाराज के विचार
भंडारे में बिना अधिकार के भोजन कर लेने पर प्रेमानंद महाराज कहते हैं की ‘यदि आप भूखें भी हों तो घर जाकर नमक रोटी खा लेना। उपवास रख परिक्रमा कर लेना। कहीं पर परिक्रमा कर रहें हो और रास्ते में कोई भोजन या दूध आदि बांट रहा हो तो मुफ्त में नहीं लेना चाहिए। इससे आपके पुण्य क्षीण होते हैं। यदि आप साधू नहीं हो और विरक्तही तो लोग कहेंगे की प्रसाद ले जाइये पर आपको बस प्रणाम कर आगे बढ़ जाना ही सही रहता है।”
आप भी करें पुरुषार्थ
प्रेमानंद महाराज कहते हैं की “आप भी धन कमाएं, पुरुषार्थ करें। आप भी विचार करें की हम भी 5 किलो हलवा बांटेंगे, खाने की आवश्यकता नहीं है। यदि आप किसी भी आश्रम में गए हैं। वहां आपने भोजन ग्रहण किया है तो आपको वहां कुछ पैसा जरूर देना चाहिए। ध्यान रखें की भोजन मुफ्त में नहीं लेना चाहिए और मुफ्त में कोई भी सेवा नहीं लेनी चाहिए। यदि आप ऐसा करते हैं तब आपको अपने जीवन में पुण्य प्राप्त होगा।”