वर्तमान में हम रबी फसल की कटाई का समय जी रहे हैं, जो लगभग दो महीने बाद पूरी हो जाएगा। इसके बाद, हमें अगली फसल, यानी खरीफ फसल के लिए तीन महीने तक का इंतजार करना होगा। इस बीच, सब्जियों की खेती करने से हम सभी को परंपरागत खेती के साथ-साथ अधिक आय की संभावना होती है। इसके अलावा, सब्जियों की खेती से हमारे खाने का स्वास्थ्य भी सुरक्षित रहता है और हमें स्वास्थ्यपूर्ण पोषण प्राप्त होता है।

मिर्च

मिर्च की खेती एक बहुत लाभकारी विकल्प है, जो कम भूमि में भी अच्छी आमदनी प्रदान कर सकती है। इस फसल की रोपाई का समय बहुत ही महत्वपूर्ण है और यही समय फरवरी-मार्च होता है। बाजार में हरी और लाल दोनों रंग की मिर्चों को अच्छी कीमत मिलती है, जो किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर हो सकता है।

ग्रीष्मकाल में मिर्च की रोपाई के लिए उन्नत किस्में जैसे की काशी अनमोल, काशी विश्वनाथ, जवाहर मिर्च-283, जवाहर मिर्च -218, अर्का सुफल, काशी अर्ली, काषी सुर्ख और काशी हरिता सुनिश्चित रूप से ज्यादा उत्पाद देने में मदद कर सकती हैं।

मिर्च की बुवाई के लिए उपयुक्त मात्रा में बीज प्राप्त करने के लिए, मिर्च की ओ.पी. किस्मों के लिए 500 ग्राम और संकर किस्मों के लिए 200-225 ग्राम बीज की मात्रा एक हेक्टेयर क्षेत्र की नर्सरी तैयार करना महत्वपूर्ण है। इससे न केवल अच्छे उत्पाद की सुनिश्चितता होगी, बल्कि यह किसानों को सही दिशा में आगे बढ़ने में भी मदद करेगा।

सूरजमुखी

सूरजमुखी की फसल नकदी फसलों में से एक बहुत ही महत्वपूर्ण फसल है। इसे ‘मुनाफा का सिंदाद’ भी कहा जाता है क्योंकि यह खेतीकरों को अच्छा मुनाफा देती है। सूरजमुखी की फसल को 15 फरवरी तक लगाया जा सकता है और इसे बहुत ही ध्यान से उगाना चाहिए। जब भी हम सूरजमुखी की बुवाई करते हैं, तो हमें इसके बीजों की पक्षियों से सावधानी बरतनी चाहिए। क्योंकि पक्षियां इन बीजों को चुरा लेती हैं। इसलिए हमें इनके बचाव के लिए उचित ध्यान देना चाहिए। सूरजमुखी की बुवाई के लिए ‘किस्म मार्डन’ बहुत ही प्रसिद्ध है, क्योंकि यह फसल को अच्छी तरह से उगाने में मदद करती है।

इसके अलावा, सूरजमुखी की और भी कई संकर किस्में हैं जो बोई जा सकती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख किस्में हैं बीएसएस-1, केबीएसएस-1, ज्वालामुखी, एमएसएफएच-19, सूर्या आदि। इसकी बुवाई करने से पहले, खेत में अच्छी नमी की आवश्यकता होती है। अगर नमी कम हो, तो पलेवा लगाकर जुताई की जा सकती है। यह सुनिश्चित करेगा कि फसल को सही ढंग से उगाया जा सके और अच्छा मुनाफा हो सके।

जब हम खेत में बुवाई की तैयारी करते हैं, तो हमें विभिन्न विकल्पों के बीच चुनाव करना पड़ता है कि किस तरह की खेत संचालन का हमें अनुभव चाहिए। एक विकल्प है पहली जुताई के बाद मिट्टी पलटने वाले हल का उपयोग करना। इसके साथ ही हम एक और विकल्प है, जो है रोटावेटर का इस्तेमाल करना। प्रत्येक विकल्प अपने फायदे और नुकसानों के साथ आता है।

जब हम पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल का उपयोग करते हैं, तो यह हमें खेत को अच्छे से बनाने में मदद करता है। हमें इसे 2-3 बार जुताई करके खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए। यह एक प्राकृतिक तरीका है जिससे खेत की सुरक्षा और खेत की उपज को बढ़ावा मिलता है।

वहीं, रोटावेटर का उपयोग करने पर भी हमें अच्छे परिणाम मिलते हैं। यह खेत की तैयारी करने का एक और तेजी से काम करने वाला तरीका है। इससे हमें समय की बचत होती है और हम अधिक खेतों की तैयारी कर सकते हैं।

खेत की बुवाई से पहले, हमें खाद की तैयारी करनी चाहिए। हमें सड़ी हुई गोबर खाद का प्रयोग करना चाहिए, जिसे खेत में मिलाकर अच्छी उपज के लिए सिंचित अवस्था में उपयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही, हमें उरिया, एसएसपी, और पोटाश का उपयोग भी करना चाहिए। इससे हमें उच्च गुणवत्ता वाली उपज प्राप्त होती है।

नाइट्रोजन, स्फुर, और पोटाश की मात्रा को बोते के समय ध्यान में रखना चाहिए। हमें नाइट्रोजन की 2/3 मात्रा और सभी स्फुर और पोटाश को बोते के समय ही देना चाहिए। वहीं, बाकी 1/3 नाइट्रोजन की मात्रा को बुवाई के 30-35 दिन बाद पहली सिंचाई के समय खड़ी फसल में देना लाभप्रद सिद्ध होता है। इससे हमें बेहतर उपज प्राप्त होती है और हमारा खेत स्वस्थ रहता है।

पेठा

पेठा कद्दू की खेती एक उत्तम विकल्प है, क्योंकि यह दोमट, बलुई और अम्लीय मिट्टी में आसानी से उगा सकता है। इस खेती के लिए कई उन्नत प्रजातियां उपलब्ध हैं जो अधिक उत्पादक और प्रतिरोधी विशेषताओं के साथ आती हैं। इनमें से कुछ प्रमुख प्रजातियां हैं: पूसा हाइब्रिड 1, कासी हरित कद्दू, पूसा विश्वास, पूसा विकास, सीएस 14, सीओ 1 और 2, हरका चंदन, नरेंद्र अमृत, अरका सूर्यमुखी, कल्यानपुर पंपकिंग 1, अंबली, पैटी पान, येलो स्टेटनेप, और गोल्डेन कस्टर्ड।

एक हेक्टेयर में पेठा कद्दू की खेती के लिए लगभग 7 से 8 किलो बीज की आवश्यकता होती है। बुवाई के लिए, एक 15 हाथ लंबा लकड़ी का डंडा उपयोग किया जाता है, जिसकी सहायता से पेठा के बीज सीधी लाइन में बोए जाते हैं। इस प्रक्रिया में, हर हाथ की दूरी पर 3 से 4 बीज बोए जाते हैं।

भिंडी

भिंडी की खेती एक महत्वपूर्ण कृषि व्यवसाय है जो वर्ष में दो बार की जा सकती है। ग्रीष्म-कालीन भिंडी की खेती के लिए बुआई का सही समय अब है। यहां पर ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुआई फरवरी-मार्च में की जा सकती है।

भिंडी की उन्नत किस्मों में पूसा ए-4, परभनी क्रांति, पंजाब-7, अर्का अभय, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, हिसार उन्नत, वी.आर.ओ.- 6 बुवाई के लिए सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 किलोग्राम तथा असिंचित दशा में 5-7 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर बीज की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की बीजदर पर्याप्त होती है।

भिंडी के बीज सीधे खेत में ही बोए जाते हैं। बीज बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिए 2-3 बार जुताई करनी चाहिए। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने हेतु प्रति हेक्टेर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद एवं नाइट्रोजन, सल्फर एवं पोटाश की क्रमश: 80 कि.ग्रा., 60 कि.ग्रा. एवं 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में देना चाहिए।

नाइट्रोजन की आधी मात्रा सल्फर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए। नाइट्रोजन की शेष मात्रा को दो भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए।