बुंदेलखंड के जंगलों में मानसून के दौरान एक खास पौधा उगता है, जिसे ककोरा के नाम से जाना जाता है। यह पौधा अपने आप ही उगता है और क्षेत्र के किसानों के लिए आय का एक बेहतरीन स्रोत बन सकता है। बाजार में इसकी मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है, जिससे ककोरा की कीमत 100 से 150 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच जाती है।
सामान्यतः किसान इसकी खेती नहीं करते, लेकिन कृषि विशेषज्ञ इसे एक बहुत अच्छी फसल के रूप में देखते हैं, जिससे किसान कम लागत में काफी अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
कृषि वैज्ञानिकों का सुझाव
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के कृषि संस्थान के वैज्ञानिक, जैसे डॉ. संतोष पांडेय, किसानों को ककोरा की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। उनका मानना है कि ककोरा की खेती कम समय में अधिक लाभ देने वाली साबित हो सकती है। डॉ. पांडेय बताते हैं कि बारिश के मौसम में यह पौधा अपने आप उगता है, और एक बार बुवाई करने के बाद 8 से 10 वर्षों तक लगातार पैदावार मिलती रहती है। यह पौधा पोषक तत्वों और औषधीय गुणों से भरपूर होता है, जो इसे स्वास्थ्य के लिए भी लाभकारी बनाता है।
कम लागत में अधिक लाभ
ककोरा की खेती किसानों के लिए एक सुनहरा अवसर साबित हो सकती है। इसे खेत की मेड़ों पर भी आसानी से उगाया जा सकता है, और इसके लिए बहुत अधिक देखभाल की जरूरत नहीं होती। ककोरा से सब्जी के अलावा अचार भी बनाया जाता है, जिसकी बाजार में काफी मांग रहती है। इसका पौधा एक बार बुवाई करने के बाद सालों तक फल देता रहता है, जिससे किसानों को लंबे समय तक लाभ मिलता है।
ककोरा की बढ़ती मांग
ककोरा की पौष्टिकता और बाजार में बढ़ती कीमत को देखते हुए, कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि यह पौधा किसानों के लिए अतिरिक्त आय का स्रोत बन सकता है। बुंदेलखंड के कई किसान पहले से इसकी खेती कर रहे हैं और अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यदि सही तरीके से खेती की जाए, तो ककोरा से किसान अपनी आमदनी को और बढ़ा सकते हैं।