अयोध्या में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा हो चुकी है। इस प्रतिमा के मूर्तिकार रहें अरुण योगीराज ने हालही में एक दिलचस्प घटना का खुलासा किया है। अपने एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा की जब वे रामलला की प्रतिमा का निर्माण कर रहें थे तब एक बंदर हर रोज उनका दरवाजा खटखटाता था। अरुण राजयोगी की प्रतिदिन शाम 4 से 5 बजे एक बंदर काफी जोर से उनका दरवाजा खटखटाता था। काम को देखता था और चला जाता था। अरुण राजयोगी ने बताया की राम मंदिर ट्रस्ट के लोगों को प्रेजेंटेशन देते हुए जब उन्होंने प्रतिमा से पर्दा उठाया तो उस समय से ही लोग प्रतिमा को देखकर हाथ जोड़ने लगे थे।
अपना 100 परसेंट काम दिया
अरुण राजयोगी ने कहा की इस प्रतिमा को बनाने में उन्होंने अपना 100 परसेंट काम दिया है और पिछले 9 माह से अपने सभी विज्ञापन बंद कर दिए गए हैं। उन्होंने कहा की मुझे अपना 100 फीसदी काम देना ज्यादा महत्वपूर्ण लगा इसलिए मैंने 9 माह से अपने सभी विज्ञापन बंद कर दिए थे। मुझे इस बात की चिंता नहीं थी की राम मंदिर के लिए मेरी इस प्रतिमा को चुना जाएगा या नहीं बल्कि मेरे लिए मानसिक शांति ज्यादा जरुरी थी।
2008 से आये पारंपरिक पेशे में
आपको बता दें की रामलला की 55 इंच की प्रतिमा में जिस पत्थर का उपयोग किया गया है। वह कर्नाटक से लाया गया विशेष काला ग्रेनाइट है। इस पत्थर से प्रतिमा का निर्माण करने वाले मूर्तिकार अरुण योगीराज अपने वंश की पांचवीं पीढ़ी के मूर्तिकार हैं। हालांकि उन्होंने MBA की डिग्री लेकर कुछ वर्ष प्रवंध के क्षेत्र में भी कार्य किया है लेकिन 2008 से वे प्रतिमा निर्माण के अपने पारंपरिक पेशे में आ गए थे।
मैं सिर्फ साधन था
अरुण योगीराज से इंटरव्यू में पूछा गया की उन्होंने यह क्यों कहा था की यह काम उनका नहीं था? इस सवाल का जवाब देते हुए अरुण योगीराज ने कहा की प्रतिमा का निर्माण करते हुए मैंने उसको प्रत्येक कोण से अच्छे से देखा था। जब प्रतिमा को मंदिर में ले जाया गया तब मैं 10 से 12 घंटे अन्य काम में जुटा रहा लेकिन जब प्राण प्रतिष्ठा हो गई तब मुझे लगा की यह काम मेरा नहीं था, मुझे पूरी तरह अलग लग रहा था, मुझे अहसास हो रहा था की मैं इसके लिए सिर्फ एक साधन भर था।