आपने एक कहावत सुनी ही होगी की यदि किसी झूठ को लगातार बोला जाए तो एक दिन वह सच का रूप ले लेता है। ऐसा ही झुठ अमरनाथ यात्रा के संबंध में सदियों से हिन्दुओं को बताया जाता रहा है कि अमरनाथ धाम की खोज 1850 में मुस्लिम गडरिये बूटा मालिक ने की थी।
बताया जाता रहा है कि इसी व्यक्ति को सबसे पहले भगवान शिव का हिम लिंग मिला था तथा यहीं से दुनिया ने बाबा बर्फानी ने बारे में जाना और बाद में अमरनाथ की यात्रा शुरू हुई। भारत की आम जनता आजतक इसी कहानी को सही मानती रही है लेकिन आज हम आपको तथ्यों के आधार पर आपको बता रहें हैं कि असल में यह कहानी बिलकुल झूठ है।
विभिन्न प्राचीन पुस्तकों में है जिक्र
आपको बता दें कि अमरनाथ के शिवलिंग के बारे में काफी प्राचीन पुस्तकों में पहले से जिक्र किया गया है। 5वीं शताब्दी में लिखे गए पुराणों से लेकर 12वीं शताब्दी में लिखी गई राजतरंगणि तथा 16वीं शताब्दी में लिखी गई आइन ए अकबरी में भी अमरनाथ धाम का जिक्र किया गया है। इसके अलावा औरंगजेब के फ्रेंच डॉक्टर फ्रैंकोइस बेरनर की लिखी किताब तथा ब्रिटिश यात्री GT vegne की पुस्तक में भी अमरनाथ धाम का जिक्र किया। ये सभी पुस्तकें इस बात को साबित करती हैं की 1850 में मुस्लिम गडरिये द्वारा अमरनाथ की खोज वाली कहानी असल में सही है ही नहीं।
लिंग पुराण में भी है वर्णन
आपको बता दें कि लिंग पुराण का लेखन काल 5वीं शताब्दी का माना जाता है। इस पुराण के 12वें अध्याय के 487 नंबर पर लिखे 151 वें श्लोक में अमरनाथ धाम जिक्र किया है।
मध्यमेश्वरमित्युक्तं त्रिषु लोकेषु विश्रुतम् ।
अमरेश्वरं च वरदं देवैः पूर्वं प्रतिष्ठितम् ॥
इस श्लोक में अमरेश्वर का अर्थ अमरनाथ में स्थापित बाबा बर्फानी से है। जिनको अमरेश्वर भी कहा जाता है।
ब्रिटिश यात्री की पुस्तक से वर्णन
आपको बता दें कि GT VEGNE एक ब्रिटिश यात्री तथा इतिहासकार रहें हैं। इन्होने 1935 से 1938 तक भारत के कश्मीर की यात्रा की थी। अपनी इस यात्रा के दौरान उन्होंने बहुत से संस्मरण लिखे थे। जिन पर दो भागो में किताबें प्रकाशित हुई थीं। पहले संस्करण के पेज 148 पर पहलगाम तथा अमरनाथ यात्रा का जिक्र किया गया है तथा दूसरे संस्करण के पेज 7 तथा 8 पर अमरनाथ धाम पर पहलगाम पहुंचने का वर्णन किया हुआ है।
किसी मुस्लिम ने नहीं की खोज
हमारे देश में इतिहास पर शोध करने वाली सबसे बड़ी संस्था भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद के निदेशक डॉ ओम जी उपाध्याय बताते हैं कि 5वीं शताब्दी से लेकर 1842 तक के सभी लेखन, ग्रंथों तथा किताबो में बाबा बर्फानी के भव्य स्वरुप का वर्णन मिलता है।
लेकिन सन 1900 के बाद अचानक यह बताया जाने लगा की बाबा बर्फानी की खोज एक मुस्लिम गडरिये ने की थी। असल में यह फेक नैरेटिव इसलिए फैलाया गया ताकी हिन्दू लोगों को अपने भव्य इतिहास का पता ही न लग सके। हिंदुओं को यह लगे की उनके धर्म की खोज मुस्लिम तथा अंग्रेजों ने की है।