पुरानी कहावत है की जहां चाह है वहीं राह है। इसी कहावत को सच्चाई के धरातल पर उतारा है सरोश होमी कपाड़िया ने। बता दें की होमी कपाड़िया ने अपनी नौकरी की शुरुआत चपरासी के कार्य थी। इसके बाद आगे बढ़कर वे क्लर्क बने। इसके बाद उन्होंने कानून की पढ़ाई की तथा सुप्रीम कोर्ट के जज बने। बता दें की अपनी मेहनत के बल पर होमी कपाड़िया सुप्रीम कोर्ट के 16 वें जज बने। पढ़ाई कर वे रक्षा विभाग में एक कलर्क की नौकरी करने लगे। इनका परिवार काफी गरीब था और इनकी पत्नी एक साधारण ग्रहणी थीं।

चपरासी के पद से की शुरुआत

आपको बता दें की होमी कपाड़िया ने जब परिवार की सहायता के लिए विचार किया तो वे बैरामजी जीजी भाई के यहां चपरासी का कार्य करने लगे। यहां इनका काम मुकदमो की फाइल को वकीलों तक पहुंचाने का होता था। बैरामजी तत्कालीन मुंबई में कई जमीनों के मालिक थे और उनके कई मुक़दमे कोर्ट में चला करते थे। बता दें की द ग्रेट एंड कंपनी नामक एक लॉ फर्म बैरामजी के सभी केसो को देखती थी। यहीं पर एक वकील कार्य करते थे। इनका नाम रत्नाकर डी सोलखे था। इन्होने ने ही एस एच कपाड़िया को कानून की पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया।

ऐसा रहा क़ानूनी सफर

इसके बाद ही एस एच कपाड़िया ने कानून की पढ़ाई को नौकरी के साथ शुरू किया। बता दें की 23 मार्च 1993 को एस एच कपाड़िया को मुंबई कोर्ट में जज बनाया गया था। इसके बाद ये अगस्त 2003 को उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बने। इसके बाद में 18 दिसंबर 2003 को इन्हें प्रमोशन देकर सुप्रीम कोर्ट का जज बनाया गया। इसके बाद में 12 मई 2010 को एस एच कपाड़िया को भारत का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया। ये इस पद पर 29 सितंबर 2012 तक रहें। लेकिन 4 जनवरी 2016 को मुंबई में इनका निधन हो गया। एस एच कपाड़िया पारसी समुदाय के पहले ऐसे व्यक्ति थे जो भारत के मुख्य न्यायाधीश बने थे।

कानून के प्रति थी दीवानगी

एस एच कपाड़िया की कानून के प्रति काफी दीवानगी थी। उन्होंने CJI सम्हालते ही आधे घंटे में ही 49 मामलों का निपटारा कर डाला था। ये छुट्टियां लेने से परहेज करते थे जब तक की काम ज्यादा आवश्यक न हो। इन्होने कॉमनवेल्थ लॉ एसोसिएशन के सम्मेलन में हिस्सा लेने से भी इसलिए मना कर दिया था क्योकि इन्हें सुप्रीम कोर्ट में जाना था। इसी कारण एस एच कपाड़िया के काम की चर्चा आज भी होती है।