नई दिल्लीः देशभर में अब सर्दी का सितम देखने को मिल रहा है, जिससे हर कोई परेशान नजर आ रहा है. पहाड़ों पर बर्फीली हवा और मैदानों में गिरते तापमान के बीच लोग गर्मागर्म पकवान खाने पसंद करते हैं. इस सीजन में ब्रेड, पकौड़ा और पकौड़ी की सेल भी काफी बढ़ जाती है, जिससे बाजारों में खाने योग्य सरसों का तेल की बिक्री में भी इजाफा होता है. अगर सब्जी के तड़के में भी तेल की मात्रा कम रह जाए तो स्वाद फीका रह जाता है. दूसरी ओर सरसों तेल के दाम काफी दिनों से देशभर में सातवें आसमान पर हैं, लेकिन अब राहत की खबर दिख रही है.
बता दें मलेशिया एक्सचेंज में गिरावट के बीच दिल्ली तेल तिलहन बाजार में मूंगफली तेल तिलहन को छोड़कर बाकी सभी खाद्य तेल तिलहनों में गिरावट का सिलसिला देखने को मिल रहा है. मलेशिया एक्सचेंज में फिलहाल लगभग दो प्रतिशत की गिरावट है जबकि शिकॉगो एक्सचेंज के बाजार में इसके दाम कभी घट और कभी बढ़ रहे है.
सूत्रों के हिसाब से एक रिपोर्ट के मुताबिक पता चला है कि आयात हो रहे तेलों का सस्ता भाव बना रहा तो अगले साल देश में 60-70 लाख टन सरसों का स्टॉक बचा रह जाएगा. सरसों का रिफाइंड भी नहीं बन पाएगा और सोयाबीन का भी यही हाल होने की पूरी संभावना हो सकती है.
इससे तिलहन बुवाई पर उल्टा असर पड़ सकता है. मंडियों में आवक घटने की वजह से बिनौला तेल कीमतों में मजबूती आई है। देश में कपास की लगभग 50 प्रतिशत जिनिंग मिलें बंद हो चुकी हैं.
पिछले वाले मौसम में सरसों की आयात 25 परसेंट बड़ी थी उस वक्त विदेशो में तेल की कीमत ज्यादा थी. उसके बाद जून-जुलाई में जब विदेशों में तेल की कीमत घटी तो सरसों की आयात कम होती चली गई. हालात यहां तक आ गए कि सस्ते आयात तेलों के सामने महंगा बैठने की वजह से सरसों खप नहीं रहा और इसी वजह से इसके तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट आ गई. ठीक यही हाल सोयाबीन का भी हो गया है.